Add To collaction

सफर - मौत से मौत तक….(ep-40)






मन्वी आकर पापा के सामने खड़ी हो गयी, उसके उदास चेहरे को पढ़ते हुए राजू ने पूछा
"क्या हुआ बेटा……"

"पापा वो नंदू अंकल थे ना….शायद अब वो नही रहे" मन्वी बोली।

राजू चौकते हुए उठ खड़ा हुआ- "लेकिन उन्हें क्या हुआ……कोई और नंदू होगा"

"नही पापा, समीर की वाइफ इशानी ने उनकी फोटो के साथ  ये सब लिखकर पोस्ट किया है, नंदू अंकल ही है" मन्वी बोली।

राजू के लिए बहुत दुख की खबर थी, वो तो एक दो दिन में मिलने जाने की सोच रहा था, यहां तक कि उसके रिक्शे को बिल्कुल रिपेयर करके उसे उसकी अमानत वापस करने जाने की सोची थी उसने, राजू को याद आया आज से दो साल पहले जब नंदू घर छोड़कर जाने वाला था तो…….

नंदू ने उस दिन बहुत ही करुणता से कहा - "अभी बहुत जल्दीबाजी में लिया है फैसला… , घर बेच दिया किसी प्रोपर्टी डीलर को और नया घर ले लिया दुसरे शहर में…."

"लेकिन सब तो ठीक चल रहा था, फिर ऐसा क्यो कर दिया….क्या जरूरत है अपने पुराने घर को छोड़कर जाने की" राजू ने सवाल किया।

"अरे यार! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, तूने भी तो ऑटो लेने के लिए अपना रिक्शा बेच दिया था ना"  नंदू बोला।

"हाँ वो तो मजबूरी थी, और मजबूरी के साथ साथ खुशी भी, क्योकि उसके बदले कुछ अच्छा ही लिया मैंने"  राजू बोला।

"लेकिन मैं अपने रिक्शे को किसी भी हालत में नही बेचूंगा, मैं भले ही हौलीकॉप्टर ले लूँ लेकिन रिक्शा नही बेचूंगा" नंदू बोला।

"क्यो इसमे ऐसा क्या है" राजू ने सवाल किया।

"मेरे बाबूजी का दिया तोहफा है ये, बाबूजी ने जिंदगी में कुछ ना देकर भी बहुत कुछ दिया मुझे,  मेरे लिए इसमे बाबूजी का आशीर्वाद है, और अपने जीते जी मैं इसे
बेच नही पाऊँगा….लेकिन समीर ने तो इस घर का सारा सामान बिकवाने को रख दिया। कहता है सब नया नया लेंगे। और ये रिक्शे के लिए भी खरीददार आ गए थे। मैं उनसे लड़कर यहाँ ले आया हूँ इसे…." नंदू बोला।

"लेकिन यहाँ क्यो???" राजू ने पूछा।

"नया घर लेने के बाद उस घर मे इसके लिए जगह बनाऊंगा और तेरे पास से ले जाऊंगा इसे….देख मेरा कलेजे का टुकड़ा है ये, इसका ध्यान रखना। जब जरूरत पड़े इस्तेमाल कर लेना, लेकिन बेचना मत" नंदू बोला।

"अरे मैं क्यो बेचूंगा, आपकी चीज़ है, जब मर्जी ले जाना, " राजू ने उस दिन कहा था।

उसके बाद बहुत बार फोन पर बात हुई हमेशा राजू नंदू से यही कहता था कि अपनी अमानत ले जाओ, तुम्हारा कलेजे का टुकड़ा रो रहा है, इसी बहाने मुलाकात भी हो जाएगी,

लेकिन नंदू हमेशा कुछ दिन के लिए बात टाल देता था। और जब मन्वी कि शादी के सिलसिले में गए तो उस वक्त ले जाना उचित नही समझा।  उस दिन वापस लौटते समय राजू का फोन बस में ही कही गिर गया और मिला ही नही, मन्वी के फोन में नंदू का नम्बर सेव नही था। इस चक्कर मे कभी पलटकर बात नही हो पाई।

आज नंदू की मौत की खबर सुनकर राजू इतना दुखी हो गया कि अगले दिन का इंतजार भी नही किया, और मन्वी से कहा।

"बेटा, मुझे आज ही जाना होगा, एक बार नंदू के घर वालो से मिलना होगा, वरना कल को बात रह जायेगी की एक ही शहर में होकर भी नही आये" राजू बोला।

"लेकिन पापा! कल तो जाना ही है हम दोनों ने" मन्वी ने कहा।

"नही बेटा! आज पता चला है तो आज ही चलेंगे, तुम मम्मी को बता दो की हम नंदू के यहां जा रहे है" राजू ने कहा।

"ठीक है पापा" कहते हुए मन्वी छत में कपड़े उठा रही मम्मी को जाकर सब बात बता दी।  भला उसने कौन सा रोकना था, बस शाम को वक्त पर आने की सलाह देकर जाने को कह दिया।

मन्वी बाहर आई और अपनी स्कूटी बाहर निकालने लगी और पापा को आवाज देते हुए बोली- "पापा मेरा और अपना दोनो का हेलमेट ले आईयेगा"

राजू बिना हेलमेट के बाहर आया और बोला- "हम रिक्शे में जा रहे है," कहते हुए राजू ने नंदू का रिक्शा बाहर निकाला।

बिना किसी बहस के मन्वी ने स्कूटी अंदर वापस खड़ी कर दी और रिक्शे में बैठ गयी।


******


नंदू और यमराज दोनो घर के माहौल से तंग आकर घर के बाहर बैठे हुए थे,
"हद है यार….वर्तमान में पहुँचने के इंतजार में ले अतीत बहुत लंबा लग रहा है, तुम कुछ करते क्यो नही" नंदू अंकल ने यमराज से कहा।

"मुझपे क्यो इल्जाम लगा रहे हो….मैंने तो आपको पहले ही कह दिया कि मेरा काम खत्म हो चुका है, अब आपकी जिद पर रुका हूँ, वरना फांसी वलें दिन ही मेरा मकसद पोइरे हो गया था" यमराज बोला।

"हाँ कहा तो था" नंदू अंकल ने धीरे से कहा तभी उसे रिक्शे में एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया।

"वो कौन आ रहा है" यमराज ने पूछा।

"मुझे क्या पता…. पास तो आने दो….दूरबीन थोड़ी है मेरी आँखें" नंदू बोला।

रिक्शा आते हुए समीर के घर के बाहर ही रुका- "अरे ये तो मेरा रिक्शा है" कहते हुए नंदू उठ खड़ा हुआ और रिक्शे की तरफ भागा।

"और वो दोस्त भी तुम्हारा ही है" यमराज ने कहा।

नंदू और यमराज रिक्शे के पास गए। रिक्शे को ताला लगाते हुए अपने आंसू पोछते हुए राजू अंदर की तरफ बढ़ा।  मन्वी भी उदास सी उनके पीछे चल पड़ी।

"कितने सालों बाद देखा तुझे….और राजू तू….चार पांच दिन पहले आ जाता इसे लेकर तो क्या पता मुझे हिम्मत मिल जाती, तू भी मरने का इंतजार कर रहा था क्या" नंदू ने कहा और राजू के पीछे पीछे अंदर की तरफ चल पड़ा।

यमराज उस रिक्शे में ही बैठ गया। क्योकि उसकी धरती लोक की यात्रा इस रिक्शे से ही शुरू हुई थी, और एक चौदह पन्द्रह साल के लड़के के साथ, आज वो ही लड़का साठ साल का होकर मिट भी चुका था। शायद जिंदगी की रफ्तार बहुत तेज है लेकिन महसूस नही होती, ठीक उसी तरह जैसे धरती घूमती हुई दिखाई नही देती।  और वक्त की रफ्तार तो बुढ़ापे में समझ आती है जब बचपन के वो दिन कल के दिन महसूस होते है। भारी जवानी में कहां वो एहसास है जो एक वृद्ध महसूस करता था। एक वृद्ध की आंखों में बस एक ही मलाल बाकी रह जाता है वो एक ही सवाल है- "कहाँ गये वो दिन जब हम भी बच्चे हुआ करते थे, काश की समय लौट पाता, और एक बार फिर बच्चे बन जाते। लेकिन इंसान  जीवन की सच्चाई जानता है क्योकि वृद्धावस्था में जाने से पहले वो हर अवस्था से वाकिफ हो चुका है, इसलिये वो अपना बचपन अपने पोता पोती में ढूंढता है, अपनी जवानी अपने लड़के लड़की और बहू में ढूंढता है, लेकिन ये बात आजकल के बच्चे कम ही समझते है, उन्हें भी बुढ़ापे में ही समझ आएगा कि बच्चो का प्यार उनके लिए क्या मायने रखता है। बच्चो का प्यार से बोलने से कितना शुकुन मिलता है। बच्चो से बात करने से कितना चैन मिलता है। अगर बच्चे किसी और कि वजह से उनसे दूर होने लगे तो क्या बीतती है दिल मे ये सब समझने के लिए हर अवस्था से गुजरना जरुरी है। लेकिन वक्त रहते समझ आ जाये तो शायद किसी की खुशी की वजह बन सकेंगे।


*******


राजू और मन्वी अंदर पहुँचे , अंदर शांति थी, एक कोने में समीर अकेले बैठा था, तो एक तरफ इशानी कान में हेडफोन लगाकर लेटी हुई थी, दो तीन औरतें भी पंचायत लगाकर बैठी थी। राजू को कोई नही पहचानता था, शिवाय समीर के।
इशानी लेटी थी, दरवाजा खुला था तो खटखटाये बिना ही राजू अंदर आ गया था।

सबने उन दोनों की तरफ नजर घुमाई , लेकिन बिना किसी की तरफ देखे ही राजू समीर के पास जाकर नंदू के माला चढ़ाई फोटो के पास हाथ जोड़कर बैठ गया, ना चाहते हुए भी उसे रोना आने लगा।
मन्वी पिछे से आकर पापा के कंधे में हाथ रखती है। और वही पर बैठ जाती है।

खुद को संभालते हुए राजू ने पूछा- "कैसे हुआ ये सब??"

"पता नही क्यो पापा ने खुदखुशी कर ली…." समीर बोला।

यह सुनकर राजू का मुंह खुले का खुला रह गया और एक ही बात निकली "वो ऐसा नही कर सकते???"

"फांसी लगा ली थी अपने कमरे में, पता नही क्यो इतना टेंशन लेते थे, ना माँ को भूल पा रहे थे, ना अपने पापा को…." समीर बोला।

नंदू भी उसकी बात सुन रहा था- "मुझे तो लगा कि मेरे मरने के बाद तुझे अपनी गलती का एहसास होगा, लेकिन तुझे तो अपनी गलतियां नजर ही नही आ रही। अपनी माँ गौरी के मौत का कारण मुझे ठहराकर, मेरी मौत का कारण अपनी माँ को ही ठहरा दिया….और तो और अब तो मेरे बाबूजी को भी बीच मे घसीटने लगा है।

"चल जो होना था हो गया….अब हम कुछ बदल नही सकते,  तूम टेंशन मत लेना, अच्छी तरह से उसके सारे अंतिम क्रिया दिल से करना, तुम्हारे पापा जहां भी होंगे जरूर देख रहे होंगे" अपने आंसू पोछते हुए राजू बोला।

मन्वी ने पीछे को देखा, इशानी ट्रिपल शीट सोफे पर लेटकर हेडफोन कान में लगाए बैठी थी।

"चाय तो पियेंगे अंकल आप….मैं अभी बनवा देता हूँ" समीर ने कहा।

"बस बेटा! कोई बात नही" राजू बोला।

"ऐसे कैसे कोई बात नही अंकल…एक मिनट" कहते हुए समीर ने इशानी को आवाज दी- "इशानी, अंकल के लिए चाय बना दो तो"

इशानी के कानों में कौन सा समीर की आवाज पहुंच रही थी। वो अपने गानों के धुन में मग्न थी, चेहरे में भले उदासी का पर्दा ओढा हो उसने, लेकिन उसके हेडफोन के गाने और किसी को तो नही, नंदु को सुनाई दे रहे थे। जिन गानों में कोई दुख दर्द नही था, और इशानी को तो इंतजार था कब जल्दी ये ड्रामा पंती खत्म हो और मेहमान सारे भागे, किसी का हालचाल पूछने आना तो खलता था इशानी को, जो काम कभी नही किया वो भी करना पड़ रहा था, ताकि लोगो के सामने संस्कारी बहु बनकर रह सके। इससे ना किसी को शक होगा कि उसकी हरकतों से नंदू ने ये सब किया और ना ही कोई उसे गलत समझेगा।

"इशानी" समीर ने जोर से आवाज दी तो उसकी बुआ पीछे मुड़ते हुए बोली।
"क्या हुआ…."

"चाय बनाना था" समीर बोला।

"तुलसी ने गर्दन इशानी की तरफ घुमाई  और उसे बेशर्मो की तरह लेटा देखकर  खुद ही उठते हुए बोली- "मैं बना लाती हूँ"

"अरे नही नही, तकलीफ नही करनी, किसका मन है कुछ भी खाने पीने को…मैंने नही पीनी चाय" राजू ने कहा।

"पापा हमे चलना भी भी है, बाद में गाड़ी नही मिलेगी, मैं बाहर इंतजार कर रही हूँ आपका, आप आ जाइयेगा"  मन्वी ने कहा।

"तभी इशानी के मोबाइल में किसी का फोन आया और वो छत की तरफ चल पड़ी"

मन्वी भी बाहर की तरफ चल पड़ी, और गेट से बाहर जाकर ही सांस ली, उसे तो घुटन हो रही थी अंदर….घर के माहौल को देखकर। 

गेट के बाहर कोई आँटी भी खड़ी थी, जो अभी फोन पर बात कर रही थी

"मैं बाहर खड़ी हूँ मालकिन, मुझे आपसे कुछ बात करनी है" पुष्पाकली ने  घर के बाहर रहकर फोन किया था

"तू फिर पैसे मांगने आ गयी, देख मेरे पास और पैसे नही है, और खबरदार जो दोबारा इधर आयी तो, चुपचाप निकल ले यहाँ से"  इशानी ने कहा जो छत से पुष्पा को गेट के पास देख रही थी।

"इतनी गिरी हुई नही हूँ मैं जो बार बार पैसे मांगू….मुझे तुम्हारे वो पैसे नही चाहिए….वही वापस करने आई हूँ,  हराम के खाने की आदत नही है मेरी, बड़े मालिक के बारे में सुना तो बहुत बुरा लगा मुझे, उन्होंने फांसी लगा ली और इस बात के लिए मैं खुद को कभी माफ नही कर पाऊंगी"  पुष्पाकली बोली।

"पहले तो तू उस लड़की से थोड़ी दूर जाकर बात कर, अगर वो सुन लेगी तो गड़बड़ ना हो जाये…." इशानी ने कहा, क्योकि वो छत से देख रही थी।

"कहाँ से देख रहे हो आप" कहते हुए पुष्पाकली मन्वी से थोड़ी दूर जा खड़ी हुई।

मन्वी तो जानती थी कि वो नौकरानी है इस घर की, लेकिन जो उसने उसकी तीन चार बाते सुनी थी उसके समझ मे नही आई, और अब पुष्पाकली दूर जा खड़ी हुई थी उसके पास जाकर सुनना भी ठीक जैसा नही लगा।

लेकिन ये समझ आ चुका था कि ये इशानी से ही बात कर रही थी। और बात भी कुछ नंदू अंकल से रिलेटेट ही रही थी,

मन्वी उसकी बातों को रिपीट करते हुए मन ही मन बोली "फांसी लगा ली….माफ नही कर पाऊंगी खुद को….तुम्हारे पैसे वापस करने आई हूँ….हराम के खाने की आदत नही है"

और कुछ सोचती की राजू आ गया और और मन्वी अपने पापा के साथ पैदल पैदल जाने लगी

तभी छत से आवाज आई - "ओ रिक्शे वाले अंकल….अपनी रिक्शा तो ले जा" इशानी छत से बोली।

राजू ने उसको जवाब देते हुए कहा- "मेरा नही है समीर का है अब वो….मैंने उससे बात कर ली है" राजू ने कहा ।

अब राजू और मन्वी चले गए, लेकिन मन्वी बार बार उस नौकरानी की बात याद कर रही थी। आखिर वो ऐसा क्यो कह रही थी।


कहानी जारी है


   18
4 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:42 PM

Good

Reply

Shalini Sharma

08-Oct-2021 09:28 PM

Very nice

Reply

Fiza Tanvi

08-Oct-2021 05:15 PM

Very intrusting

Reply